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उ॒रौ म॒हाँ अ॑निबा॒धे व॑व॒र्धापो॑ अ॒ग्निं य॒शसः॒ सं हि पू॒र्वीः। ऋ॒तस्य॒ योना॑वशय॒द्दमू॑ना जामी॒नाम॒ग्निर॒पसि॒ स्वसॄ॑णाम्॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

urau mahām̐ anibādhe vavardhāpo agniṁ yaśasaḥ saṁ hi pūrvīḥ | ṛtasya yonāv aśayad damūnā jāmīnām agnir apasi svasṝṇām ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

उ॒रौ। म॒हान्। अ॒नि॒ऽबा॒धे। व॒व॒र्ध॒। आपः॑। अ॒ग्निम्। य॒शसः॑। सम्। हि। पू॒र्वीः। ऋ॒तस्य॑। योनौ॑। अ॒श॒य॒त्। दमू॑नाः। जा॒मी॒नाम्। अ॒ग्निः। अ॒पसि॑। स्वसॄ॑णाम्॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:1» मन्त्र:11 | अष्टक:2» अध्याय:8» वर्ग:15» मन्त्र:1 | मण्डल:3» अनुवाक:1» मन्त्र:11


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - जैसे (पूर्वीः) प्राचीन (आपः) जल मेघ से बढ़ते हैं वैसे (यशसः) कीर्ति से (महान्) जो बड़ा है वह (अनिबाधे) बाधा रहित (उरौ) बहुत व्यवहार में (अग्निम्) अग्नि को प्राप्त कर (हि, सं, ववर्ध) अच्छे प्रकार बढ़ता है जैसे (अग्निः) पावक (ऋतस्य) जल के (योनौ) कारण में (अशयत्) सोता है वैसे (जामीनाम्) भोगनेवाली (स्वसॄणाम्) बहिनियों के =बहिनों के (अपसि) कर्म में स्थिर होकर (दमूनाः) दमनशील जन विद्या में बढ़ता है ॥११॥
भावार्थभाषाः - जो निर्विघ्न विद्यार्थी विद्या के ग्रहण करने में प्रयत्न करें, तो दम और शमादि गुणयुक्त होते हुए सब सम्बन्धियों को विद्यायुक्त कर सकें ॥११॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

यथा पूर्वीरापो मेघेन वर्धन्ते तथा यशसो महाननिबाध उरावग्निं प्राप्य हि संववर्ध। यथाग्निर्ऋतस्य योनावशयत्तथा जामीनां स्वसॄणामपसि स्थिता दमूना विद्यायां वर्धते ॥११॥

पदार्थान्वयभाषाः - (उरौ) बाहौ (महान्) (अनिबाधे) बाधारहिते (ववर्ध) वर्धते (आपः) जलानि (अग्निम्) पावकम् (यशसः) कीर्तेः (सम्) सम्यक् (हि) खलु (पूर्वीः) प्राचीनाः (ऋतस्य) जलस्य (योनौ) कारणे (अशयत्) शेते (दमूनाः) दमनशीलाः (जामीनाम्) भोक्तॄणाम् (अग्निः) पावकः (अपसि) कर्म्मणि (स्वसॄणाम्) भगिनीनाम् ॥११॥
भावार्थभाषाः - यदि निर्विघ्ना विद्यार्थिनो विद्याग्रहणे प्रयत्नं कुर्युस्तदा दमशमादिगुणान्वितास्सन्तस्सर्वेषां सम्बन्धिनां विद्यासंप्रयोगं कर्तुं शक्नुयुः ॥११॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जर विद्यार्थी निर्विघ्नपणे विद्या ग्रहण करण्याचा प्रयत्न करतील तर त्यांचे दम-शम इत्यादी गुण वाढून ते सर्व नातेवाईकांना विद्यायुक्त करू शकतील. ॥ ११ ॥